Krushak Gaan Kavita Explanation | 10Th Class | Hindi
Krushak Gaan Kavita Explanation | कृषक गान कविता स्पष्टीकरण | Mrsuryawanshi.Com
नमस्ते पाठको,
आज हम कृषक गान इस कविता को समझने का प्रयास करेंगे । दिनेश भारद्वाज द्वारा लिखित यह कविता कक्षा १० वीं की हिंदी पाठयपुस्तक हिंदी लोकभरती के अंतर्गत आई हुई है । कृषक का अर्थ है किसान । यह कविता किसानों की दुर्दशा को उज्जागर करती है । किसानों का महत्त्व समझाती हैं । इस कविता के माध्यम से कवि यह चाहते है कि हम सभी किसानों का सम्मान करें ।
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Krushak Gaan | कृषक गान
हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है,
जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है,
दीनता अभिमान जिसका, आज उसपर मान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
शब्दार्थ:
१) संतोष = तृप्ति, प्रसन्नता, Satisfaction
२) मधुमास = वसंत ऋतु ( आनंद )
३) पतझर = दुःख
३) दीनता = गरीबी
४) अभिमान= गर्व
५) मान = सम्मान
अर्थ: इस पद्यांश में कवि किसान का सम्मान करना चाहते हैं, उसके सम्मान में गीत गाना चाहते हैं । कारण क्या है, कवि ऐसा क्यों करना चाहते हैं ? क्योंकि कवि का कहना है कि जगत में मधुमास परंतु उसपर सदा पतझर रहा है । अर्थात् जगत में खुशियाँ ( मधुमास ) है परंतु किसान के जीवन में दुख ( पतझर ) है । गरीबी ही उसकी पहचान बनी है लेकिन फिर भी वह समाधानी ( संतोष ) है । इसलिए कवि किसान का सम्मान करना चाहत है । उसके सम्मान में गीत गाना चाहता है ।
चूसकर श्रम रक्त जिसका, जगत में मधुरस बनाया,
एक-सी जिसको बनाई, सृजक ने भी धूप-छाया,
मनुजता के ध्वज तले, आह्वान उसका आज कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
शब्दार्थ:
१) श्रम = मेहनत
२) मधुरस = मीठा
३) सृजक = Creator
४) मानुजता = इंसानियत, Humanity
५) अहवान = पुकार बुलावा, याद करना , Invoke
अर्थ: इस पद्यांश में कवि किसान का आहवान करना चाहते है, उसे बुलाना, पुकारना, याद करना चाहते है । कारण क्या है, कवि किसान को याद करना क्यों चाहते है ? क्योंकि कवि का कहना है कि दुनिया बनानेवाले ने ( सर्जक ने ) सभी के लिए एक जैसी दुनिया बनाई, परंतु किसान ही वह व्यक्ति है जिसे कड़ी मेहनत करनी पड़ती है । उसकी उसी कड़ी मेहनत के कारण ही यह दुनिया मीठी ( मधुरस ) बनी है । अर्थात् किसान ही वह व्यक्ति है जिसने यह दुनिया रहने लायक बनाई है । कवि इंसानियत के नाते ही आज उन किसानों को याद करना चाहता है, उनके सम्मान में गीत गाना चाहता है ।
विश्व का पालक बन जो, अमर उसको कर रहा है,
किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है,
आज उससे कर मिला, नव सृष्टि का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
शब्दार्थ:
१) पालक = रक्षक, Protector
२) पालित = पाला हुआ
३) दलित = कुचला हुआ, दबाया हुआ
४) कर = हाथ
अर्थ: इस पद्यांश में कवि किसान के लिए एक नई सृष्टि का निर्माण करना चाहते हैं । ऐसा क्यों ? क्योंकि कवि का कहना है कि किसान विश्व को पालता, किसान द्वारा उगाया गया अन्न खाकर ही सभी जीवित है, परंतु किसान जिनको पाल रहा है उन्हीं के पैरों तले कुचला जा रहा है । कवि का कहना है कि किसान कड़ी मेहनत कर रहा है परंतु उसकी मेहनत का फल उसे प्राप्त नहीं हो रहा है, इसलिए कवि किसानों के लिए एक नई दुनिया बनाना चाहता है, किसान से हात मिलाना चाहता है, उनके लिए गीत गाना चाहत है ।
क्षीण निज बलहीन तन को, पत्तियों से पालता जो,
ऊसरों को खून से निज, उर्वरा कर डालता जो,
छोड़ सारे सुर-असुर, मैं आज उसका ध्यान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
शब्दार्थ:
१) क्षीण = दुर्बल, कमजोर
२) निज = अपना
३) ऊसरों = बंजर, अनुपजाऊ
४) उर्वरा = उपजाऊ
५) सुर = देवता
६) असुर = दानव
अर्थ: इस पद्यांश में कवि सभी सुर - असुरों को छोड़कर किसान को नमस्कार ( ध्यान ) करना चाहते हैं । ऐसा क्यों, कारण क्या है ? कवि का कहना है कि किसान कड़ी मेहनत से अनुपजाऊ, बंजर भूमि को उपजाऊ बनाता है । उस भूमि में अन्न उगाता है परंतु किसान इतना मजबूर, लाचार है कि उस ताजे अन्न का फायदा उसे नहीं हो रहा है । उसके नसीब में तो रूखा - सूखा भोजन ही है । किसान का शरीर दिन ब दिन कमजोर होता जा रहा है । किसान की ऐसी अवस्था देखकर आज कवि सुर - असुर को भूलकर किसान को नमस्कार करना चाहता है ।
यंत्रवत जीवित बना है, माँगते अधिकार सारे,
रो रही पीड़ित मनुजता, आज अपनी जीत हारे,
जोड़कर कण-कण उसी के, नीड़ का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
शब्दार्थ:
१) यंत्रवत = यंत्र के समान
२) नीड = घोसाला
अर्थ: इस पद्यांश में कवि किसान के लिए घर बनाना चाहता है । अर्थात अपनी ओर से जितनी हो सके उतनी मदद करना चाहत है । कवि का कहना है कि किसान की ऐसी दुर्दशा देखकर इंसानियत भी दुखी होकर रो रही है । जिस किसान की वजह से हम जीवित है उस किसान को बिना मांगे ही उसे उसके सारे अधिकार मिल जाने चाहिए थे परंतु उसे उसके अधिकार मांगने पढ़ रहे है । मांगने पर भी उसे उसके अधिकार नहीं मिल रहे है । किसानों को सिर्फ और सिर्फ एक यंत्र ( मशीन ) समझा जा रहा है । मशीन अर्थात वह जो मानुषों की हाथ की कठपुतली बना रहे, अपने हक्क और अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाए । कवि चाहता है कि उनके द्वारा जितनी हो सके उतनी मदद वह किसान को करें ।
इस कविता से हमें किसानों की समस्याएं और किसानों के प्रति कवि की चाहत पता चली ।
आप के द्वार कोई सुझाव हो या दिए गए स्पष्टीकरण से आपको कोई सहायता प्राप्त हो तो हमें जरूर बताइए ।
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