Vardan Mangunga Nahi Poem Explanation | 9Th Class

 ९. वरदान माँगूँगा नहीं

वरदान माँगूँगा नहीं कविता स्पष्टीकरण | कक्षा ९ वीं | Vardan Mangunga Nahi Poem Explanation | 9Th Class

नमस्ते पाठकों,

इस ब्लॉग में कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी द्वारा लिखित कक्षा ९ वीं के अंतर्गत आई कविता ' वरदान माँगूँगा नहीं ' का स्पष्टीकरण करने का प्रयास किया गया है ।

स्पष्टीकरण की शुरुवात कुछ प्रश्न से:
१) वरदान का अर्थ क्या है ?
२) वरदान देता कौन है ?

वरदान का अर्थ है, मन चाही चीज और वरदान ईश्वर द्वारा प्रसन्न होकर दिया जाता है । इस कविता में आपको वरदान ईश्वर से माँगने की बात हो रही है ऐसे समझाना है ऐसे समझो या समाज में मौजूद सक्षम लोगो से माँगाने की बात हो रही है ऐसे समझना है ऐसे समझो । वरदान का एक अर्थ हम मदद भी समझ सकते है । कवि का कहना है कि हमें वरदान नहीं माँगना चाहिए । अर्थात हमें मदद नहीं माँगना चाहिए ।



वरदान माँगूँगा नहीं कविता स्पष्टीकरण
Vardan Mangunga Nahi Poem Explanation | 9Th Class 




यह हार एक विराम है
जीवन महा-संग्राम है
तिल-तिल मिटूंगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।


शब्दार्थ:
१) हार = पराजय
२) विराम = रुकावट / विश्राम
३) महा = बड़ा
४) संग्राम = युद्ध
५) तिल - तिल = धीरे धीरे, थोड़ा - थोड़ा

स्पष्टीकरण:
कवि कह रहे हैं कि मेरी जो हार है उसे मैं रुकावट नहीं समझूंगा, मेरी हर को मैं सिर्फ और सिर्फ आराम समझूंगा । कवि का कहना है कि मैं आराम करके फिर से अपने लक्ष प्राप्ति में लग जाऊँग । अपने लक्ष प्राप्ति के लिए अगर मुझे तिल - तिल मिटना पड़े ( जब तक शरीर में प्राण है तब तक प्रयत्न करूंगा ), तो मैं तिल तिल मिटना स्वीकार करूंगा; परंतु आपसे वरदान रूपी भीख नहीं लूँगा । कवि का कहना है कि जीवन एक बड़ा युद्ध है और इस युद्ध में हर - जीत तो लगी रहती है इसीलिए स्वाभिमानी बनो, अपने आप पर विश्वास राखो, मदद के लिए हाथ मत फैलाओ ।

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स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्‍ति चाहूँगा नहीं
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।


शब्दार्थ:
१) स्मृति = यादें स्मरण
२) प्रहार = समय

स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि अगर उनके दिन बदल जाए, उनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़े, आज जो भी है वह भग्न ( खंडहर ) हो जाए, उनके अच्छे दिन दुखों में बदल जाए; तो भी वह ईश्वर से मदद नहीं माँगेंगे । वह ईश्वर से नहीं कहेंगे कि उनका बिता समय वापस दिलाने के लिए उन्हें ढेर सारे पैसों की मदद करें । कवि अपनी समस्याओं का सामना खुद करना चाहते है । वह अपने अच्छे दिन खुद की काबिलियत से लेकर आना चाहते है ।


क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।


शब्दार्थ:
किंचित = थोड़ा, काम
संघर्ष = युद्ध ( कोशिश )
पथ = रास्ता

स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि संघर्ष करते वक्त हार या जीत दोनो में से एक प्राप्त होगा ही । अगर जीत मिले तो जीत और हार मिले तो हर, कवि कबुल करेंगे; परंतु वरदान माँगना कबूला नहीं जाएगा । अनेक लोग जीत मिलने पर बहुत अधिक प्रसन्न हो जाते है और हार मिलने पर बहुत अधिक दुखी । हार मिलने पर पुनः प्रयत्न करने की अपेक्षा वे अपने आप पर ही संदेह करने लग जाते है , निराश / उदास हो जाते है, तनाव से घिर जाते है । कवि का कहना है कि इस संघर्ष पथ पर उन्हें जो भी मिले उन्हें स्वीकार है । अर्थात वह हार या जीत को समान भाव से देखने की सीख यहाँ दे रहे है । कवि का कहना है कि उन्हें जो भी मिलेगा वह वे स्वीकार कर लेंगे परंतु अपनी हार को जीत में बदलने का वरदान नहीं माँगेंगे ।


लघुता न अब मेरी छुओं
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।


शब्दार्थ:
१) लघुता = ओछापन, छोटापन
२) वेदना = पीड़ा, दर्द
३) व्यर्थ = बेकार

स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि आप महान हो, आप शक्तिशाली हो, आप में कुछ भी कर सकने की क्षमता है; परंतु मैं आपके समान नहीं हूं । आपकी महानता, शक्ति, क्षमता आप ही को मुबारक । आपको ऐसे लगता है कि मैं आपके दर पर आऊंगा, अपनी वेदना बताऊंगा, गिड़गिड़ाऊंगा, अपनी नाक तुम्हारे सामने रगडूंगा, मदद की भीख माँगूंगा, गलत ; तुम चाहे कितने भी सक्षम हो तो भी मैं तुमसे मदद नहीं माँगूँगा । वरदान नहीं माँगूँगा ।


चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूंगा नहीं ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।


शब्दार्थ:
१) अभिशाप = श्राप
२) कर्तव्य = वह कार्य जो किया जाना चाहिए, आवश्यक कार्य

स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि तुम अगर मुझे पीड़ा दे सकते हो तो दे दो । तुम मुझे श्राप दे सकते हो तो दे दो । मैं उसे स्वीकार करूंगा । आपको मेरे जीवन में जितने संकट खड़े करना है करो, मैं अपने कर्तव्य से नहीं भागूंगा । उन समस्त संकटों से लडूंगा किंतु वरदान नहीं माँगूँगा ।


वरदान माँगूँगा नहीं कविता में कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी स्वाभिमान से जीने, प्रत्येक स्थिति को समान भाव से देखने और प्रत्येक स्थिति में अपने कर्तव्य को करते रहने की सीख दे रहें है ।


मैं उम्मीद करता हूं कि MrSuryawanshi.com द्वारा किया गया स्पष्टीकरण का यह प्रयास आपको पसंद आया होगा । अगर आप कुछ सुझाव देना चाहते है या इस स्पष्टीकरण से आपको सहायता प्राप्त हो तो हमें जरूर बताइए ।


धन्यवाद ।

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