निस्वार्थ सेवा का पुरस्कार | Prithvi Se Agni Tak Swadhyay Kahani Lekhan
गाँव में मेला देखने वालों की भीड़ । सड़क पर प्रवेश द्वार के बीचोबीच बड़ा-सा पत्थर । पत्थर से टकराकर छोटे-बड़ों का गिरना । बहुत देर से लड़के का देखना । लड़के द्वारा पत्थर हटाना, उसके नीचे चिट्ठी पाना । चिट्ठी में लिखा था ....? । पुरस्कार पाना । सीख और शीर्षक | Prithvi Se Agni Tak Swadhyay
निस्वार्थ सेवा का पुरस्कार ।
नंदीग्राम के मैदान में मेला लगा हुआ था । इस कारण आस - पास की गाँवों से भी लोग वहाँ खींचे चले आ रहे थे । गाँव में मेला देखने वालों की भीड़ लगी हुई थी । मेले की ओर जाती हुई सड़क विविध वस्तुओं की दुकानों से सजी हुई थी । रंग - बिरंगी कपड़े पहन बाल - बच्चे, बड़े - बूढ़े सभी मेले की ओर जा रहे थे । परंतु एक बात बड़ी खटक रही थी । सड़क पर प्रवेश द्वार के बीचों - बीच एक बड़ा - सा पत्थर था । इस पत्थर के कारण कई लोगों को मेले में प्रवेश करने हेतु कठिनाईयाँ आ रही थी । कोई पत्थर से टकरा रहा था, तो कोई पत्थर से टकरा कर गिर रहा था । परंतु किसी ने भी उस पत्थर को प्रवेश द्वार से दूर करने का प्रयास भी नहीं किया ।
राजू बहुत देर से इस गिरने - पड़ने के सिलसिले को देख रहा था । उसे लगा कि कोई तो समझदार आएगा और उस पत्थर को वहाँ से हटा देगा । परंतु सब खुद को संभालकर अंदर प्रवेश कर रहे थे । आखिर कार राजू ने ही उस पत्थर को हटाने का प्रयत्न किया । काफी प्रयत्न करने के बाद वह बड़ा पत्थर मेले के प्रवेश द्वार से हट पाया । उस पत्थर के नीचे उसे एक चिट्ठी मिली । उस चिट्ठी में लिखा था, " मेले के भीतर नंदीग्राम के सरपंच आपकी प्रतिक्षा कर रहे है । "
राजू अपने कार्य से बहुत प्रसन्न था । जब वह सरपंच से मिला, तो सरपंच ने उसे शाबाशी दी । मेले में सब के सामने उसकी प्रशंसा की और उसे एक साइकिल इनाम में दी । सरपंच ने लोगो को संबोधित करते हुए कहा, " मेरे प्यारे ग्रामवासियों, हमें राजू से प्रेरणा लेनी चाहिए । "
सीख : कर भला, तो हो भला ।
पढ़ने हेतु:
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